Thursday, June 2, 2016

About Rajasthan

परिचय
राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह उत्तर एवं उत्तर पूर्व में पंजाब तथा हरियाणा, पूर्व में उत्तर प्रदेश, दक्षिण पूर्व में मध्य प्रदेश एवं दक्षिण पश्चिम में गुजरात द्वारा घिरा हुआ है । राज्य का दक्षिणी हिस्सा कच्छ की खाड़ी से 225 किमी तथा अरब सागर से 400 किमी दूर स्थित है ।
जयपुर राजस्थान की राजधानी है जो की राज्य के मध्य पूर्व में स्थित है ।
राजस्थान, एक अविश्वसनीय रूप से सुंदर राज्य भारत के उत्तर पश्चिम में मौजूद है जो अपने आप में कालातीत आश्चर्य का जीवंत उदहारण है, अगर व्यक्ति यात्रा का पारखी है तो उसे यहां जरूर जाना चाहिए। हम इस बात की पूरी गारंटी लेते हैं की वो कभी भी अपनी इस यात्रा को भूल नहीं पायेगा अतः वो यहां एक बार जरूर जाये। प्राचीन वास्तुकला एक चमत्कार के तौर पर राजस्थान को और भी अधिक रॉयल बनाती है जो राजस्थान रॉयल्स की समृद्धि का एक जीवंत उदाहरण है। राजस्थान का शुमार दुनिया की उन जगहों में है जो अपने यहाँ आने वालों को बहुत कुछ देता है । आइये विस्तार से राजस्थान के हर एक पहलुओं पर नज़र डाली जाये।
इस ऐतिहासिक राज्य की स्थलाकृति
देश के पश्चिमोत्तर की ओर स्थित, राजस्थान भारत गणराज्य में क्षेत्र से सबसे बड़ा राज्य है। ये राज्य भारत के 10.4% भाग को अपने में समेटे हुए है जिसमें 342,269 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है। गुलाबी नगरी जयपुर यहाँ की राजधानी है जबकि अरावली रेंज में स्थित माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। राजस्थान का पश्चिमोत्तर भाग काफी शुष्क और रेतीले है जिसमें से अधिकांश भाग को थार रेगिस्तान ने कवर कर रखा है।
राजस्थान की जलवायु
राजस्थान में मौसम को 3 भागों में बांटा गया है  जिसमें  गर्मी, मानसून और सर्दियों शामिल हैं। पूरा राज्य केवल मॉनसून को छोड़कर बाकी सारे समय शुष्क और सूखा रहता है। राज्य गर्मियों में सर्वाधिक गर्म रहता है इस दौरान यहां का पारा 48 डिग्री तक चला जाता है। पूरे राज्य में केवल माउंट आबू ही वो स्थान है जहां गर्मियों के दौरान मौसम सुखद रहता है।
राजस्थान में आपको कौन सी भाषा सुनने को मिलती है ?
राज्य की मुख्य भाषा राजस्थानी है साथ ही यहां हिन्दी और अंग्रेजी का भी इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर किया जाता है। साथ ही यहां की पुरानी पीढ़ी यानी की बुज़ुर्ग आज भी अपनी बोली में सिन्धी भाषा का इस्तेमाल करते है।
रंगारंग संस्कृति और स्वादिष्ट व्यंजन
बात अगर राजस्थान की हो और हम यहाँ की रंगारंग संस्कृति और स्वादिष्ट व्यंजनों की बात न करें तो राजस्थान का जिक्र अधूरा है । राजस्थान राज्य संस्कृति और परंपराओं में आज भी महान समृद्धि का दावा पेश करता है। जबकि राजस्थान के स्थानीय लोगों के बीच संगीत और नृत्य अभ्यास भी बहुत ही जीवंत और आकर्षक हैं, इन बातों के अलावा ये जगह अपने लाजवाब आर्टवर्क के लिए भी जानी जाती है। यहाँ के पारंपरिक कपड़े बहुत ही कलात्मक होते हैं जिसमें शीशे के काम को देखा जा सकता है। कला और उसके प्रेमियों के लिए राजस्थान एक स्वर्ग से कम नहीं है।
राज्य में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में  होली, तीज, दीपावली, देवनारायण जयंती, संक्रांति और जन्माष्टमी का विशेष महत्त्व है । इसके अलावा, वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला राजस्थानी रेगिस्तान त्योहार, ऊंट मेला , और पशु मेला भी राज्य के प्रमुख उत्सवों में अपनी जगह रखते हैं।
राज्य में पानी के आभाव  के चलते आपको यहां ताज़ी सब्जियों में कमी दिखाई देगी।  जिसके चलते प्रायः यहां का मुख्य भोजन शुष्क होता है।  लेकिन इन बातों के बावजूद यहां के भोजन की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है। अगर यहां के पारंपरिक भोजन की बात की जाये तो इसमें दाल भाटी, बेल गट्टे, रबड़ी, बाजरे की रोटी और लहसुन की चटनी मावा कचौड़ी और बीकानेर ने रसगुल्लों को शामिल किया गया है। अगर आप राजस्थान में हैं तो इन भोजनों को खाने में ज़रा भी संकोच मत कीजिये।
जब आप "राजाओं की भूमि" पर हों तो महलों की सैर करना मत भूलिए!
जैसा की हमने आपको राजस्थान के भूगोल, जलवायु और संस्कृति के बारे में सब कुछ बता दिया है, लेकिन अब जो हम आपको बताने वाले हैं वो कुछ ख़ास है अब हम आपको बताएँगे जब आप इस राज्य में हों तो आप कहाँ अपना डेरा डालें। राजस्थान का हर एक भाग पर्यटन की दृष्टि से अपने आप में रॉयल और खूबसूरत है साथ ही यहाँ ऐसा बहुत कुछ है जो आपका मन मोह लेगा। जयपुरजोधपुरउदयपुर और बीकानेर जैसे खूबसूरत शहरों को अपने में समेटने वाले इस राज्य में घूमने से नहीं रोक पाएंगे आप। इसके अलावा यहाँ बांसवाड़ा, कोटाभरतपुरबूंदीविराट नगर, सरिस्का और शेखावाटी जैसे भी शहर हैं जो आपकी यात्रा को और भी अधिक रोचक और यादगार बनाएंगे।
प्रकृति प्रेमियों और वन्य जीवन में रूचि रखने वाले लोगों के लिए भी यहाँ बहुत कुछ है। रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान,सरिस्का टाइगर रिजर्व, दरा वन्य प्राणी अभयारण्य और कुम्भलगढ़  वन्यजीव अभयारण्य यहाँ आने वाले प्रकृति प्रेमियों को हर वो चीज़ देते हैं जिनकी उनको चाह रहती है। यहाँ कई सारे हिन्दू और जैन मंदिर के अलावा पूजा पाठ के कई महत्त्वपूर्ण स्थान भी हैं। इतिहास और वास्तु में रूचि रखने वालों को भी ये राज्य बहुत कुछ देता है । राजस्थान में स्थित हर एक महल, हवेली, किला एक उम्दा वास्तुकला को दर्शाता है। 
अतः भारत में स्थित राजस्थान राज्य एक यादगार डेस्टिनेशन है यहां आप जरूर आइये यहाँ कोई न कोई ऐसी चीज जरूर होगी जो आपकी यात्रा को यादगार बना देगी। अंत में हम प्रसिद्द लैटिन दार्शनिक और बिशप सेंट ऑगस्टाइन की एक पंक्ति से आपको जरूर अवगत कराना चाहेंगे  " ये दुनिया एक किताब और जो लोग यात्रा नहीं करते उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही पृष्ठ पढ़ा है।"

List of Chief Ministers (CM) of Rajasthan

List of Chief Ministers (CM) of Rajasthan



Sr.no.Chief Ministers NameFromToParty Name
1Heera Lal ShastriApr 7, 1949Jan 5, 1951INC
2C S VenkatachariJan 6, 1951Apr 25, 1951INC
3Jai Narayan VyasApr 26, 1951Mar 3, 1952INC
4Tika Ram PaliwalMar 3, 1952Oct 31, 1952INC
5Jai Narayan VyasNov 1, 1952Nov 12, 1954INC
6Mohan Lal SukhadiaNov 13, 1954Apr 11, 1957INC
7Mohan Lal SukhadiaApr 11, 1957Mar 11, 1962INC
8Mohan Lal SukhadiaMar 12, 1962Mar 13, 1967INC
 President's ruleMar 13, 1967Apr 26, 1967 
9Mohan Lal SukhadiaApr 26, 1967Jul 9, 1971INC
10Barkatullah KhanJul 9, 1971Aug 11, 1973INC
11Hari Dev JoshiAug 11, 1973Apr 29, 1977INC
 President's ruleApr 29, 1977Jun 22, 1977 
12Bhairon Singh ShekhawatJun 22, 1977Feb 16, 1980JP
13Jagannath PahadiaJun 6, 1980Jul 13, 1981INC
14Shiv Charan MathurJul 14, 1981Feb 23, 1985INC
15Hira Lal DevpuraFeb 23, 1985Mar 10, 1985INC
16Hari Dev JoshiMar 10, 1985Jan 20, 1988INC
17Shiv Charan MathurJan 20, 1988Dec 4, 1989INC
18Hari Dev JoshiDec 4, 1989Mar 4, 1990INC
19Bhairon Singh ShekhawatMar 4, 1990Dec 15, 1992BJP
20President's ruleDec 15, 1992Dec 4, 1993 
21Bhairon Singh ShekhawatDec 4, 1993Nov 29, 1998BJP
22Ashok GehlotDec 1, 1998Dec 8, 2003INC
23Vasundhara Raje ScindiaDec 8, 2003Dec 11, 2008BJP
24Ashok GehlotDec 12, 2008Dec 13, 2013INC
25Vasundhara Raje ScindiaDec 13, 2013PresentBJP

Wednesday, June 1, 2016

Rajasthan Festival

Rajasthan Fairs & Festivals

Welcome to the glorious land of kings (Maharajas). Rajasthan is a treasure trove of history, culture, art and architecture. Fairs and festivals of Rajasthan India showcase the rich and colourful culture of Rajasthan. Rajasthan is a place where joy knows no boundary. Fairs and festivals of Rajasthan add colours to the desert land of Rajasthan. Travel to Rajasthan during festive occasions to savour the real flavours of the state. Fairs and festivals of Rajasthan bring the desert into life and fill colours of joy. These fairs and festivals provide a platform to folk dancers and singers to showcase their talent.

These dazzling fairs and festivals in Rajasthan offer a chance to travellers to have a glimpse into the art, culture, customs and history of the state. Some of the popular Rajasthan fairs and festivals are Camel Festival, Desert Festival, Pushkar Fair and Urs Fair. Other festivals include Angaur Festival, Nagaur Festival, Kite Festival, Teej, Marwar Festival, Summer Festival, Baneshwar Fair and Sheetla Mata Fair. Travel to Rajasthan and participate in the jubilant activities.

Some of the major highlights of Rajasthan fairs and festivals are puppet shows, camel races, folk music and dance performances, cock and bull fighting, camel trouping and trading of camels or other cattle. All fairs and festivals of Rajasthan are celebrated with zeal and enthusiasm. Explore the colourful handicrafts of the state. You can buy handicrafts for your loved ones. See cultural dances and the impressive display of fireworks. Tour to Rajasthan during the fair or festival guarantees to provide delightful time.



Desert Festival, Jaisalmer
During the winters, an annual event organized in the Golden City of Rajasthan – Jaisalmer makes the desert come alive with bright and vibrant colours. This three days festival held every year in the month of February showcases the rich Rajasthani folk culture. The entire city of Jaisalmer is bustling with colours, music and dance, Rajasthani men and women dressed beautifully in hued costumes sing and dance on the haunting ballads of valour, romance and tragedy. The Desert Festival is a great extravaganza with various competitions and contest happening such as turban tying competition, longest moustaches competition, entertaining puppet shows, folk dance competition and renowned musicians participate in various folk musical recitals. Camels also are one of the main highlight of this event as they take part in camel polo, camel dance and some other contests. This joyful festival of traditional Rajasthani culture and performing art and craft comes to an end with a captivating sound and light show amidst the sand dunes on a moonlit night.

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Nagaur Fair, Nagaur
Second largest fair of India - Nagaur Fair is celebrated for eight days every year in the month of January – February in the Rajput town of Rajasthan – Nagaur. The fair is mainly known for its animal trading and displays thousands of animals which are magnificently decorated with colourful accessories to attract traders gathered from various places here. The fair is famous as Cattle Fair as it boasts of trading about 70,000 bullocks, cows, camels, and horses. The owners of the animals also dress with colourful turbans and long moustaches and are very enthusiastic about selling their animals at the best possible price. Besides the trade of animals some other attractions of the fair include Mirchi bazaar (largest red chilly market of India), wooden items and camel leather accessories. Visitors enjoy the exciting sports activities being held here such as tug of war, camel races, bullock races, cock fights and many more. The evenings with campfire and puppet shows is a delightful experience that gives the feel of the desert stillness and enchanting ambience with folk music of Jodhpur. 

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Pushkar Fair, Pushkar
The famed Pushkar fair is one of the largest camel fairs in the world. The fair takes place for five days every year in the holy city of Rajasthan – Pushkar on the banks of the Pushkar Lake. The main activity of this fair is the trading of livestock such as camels, horses and cattle between villagers who come from different parts of the state. Pushkar Fair has become one of the major tourist attractions of India and many tourists attend this annual fair with great joy. Some of the enthralling competitions such as matka phod, longest moustache, turban tying and balancing on camel contests are part of the fair. During this fair thousand of devotees throng the lake around Kartik Purnima in October-November to take a holy dip in the lake to wash away their sins. The fair jostle into life in Pushkar and the small town of Rajasthan becomes an extraordinary place of colour, music and movement. 

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Summer Festival, Mt. Abu
The only hill station of Rajasthan – Mt. Abu celebrates the Summer Festival every year in the month of June. This three day festival held amidst steep rocks, serene lake and pleasant climate of Mount Abu is a wonderful opportunity to have a sneak in the tribal life and culture of Rajasthan. The event has some spectacular folk music and dance shows, sporting boat race on the Nakki Lake and Sham-e-Qawwali adds a variety to the festival. At the end of the festival sparkling fireworks are showcased that makes the festival memorable one. 





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Marwar Festival, Jodhpur
The Sun city of Rajasthan - Jodhpur organises Marwar Festival also known as Maand Festival in the month of Ashwin (September – October) which is held for two days. The festival is dedicated to the folk heroes of Rajasthan and a display captivating folk music and dance of the Marwar region, which revolves around the lifestyle of the former rulers of Rajasthan and this act, is known as Maand. Camel tattoo show and camel polo are some other attractions of the festival. Umaid Bhavan Palace, Mandore and Mehrangarh Fort makes up as perfect host to the festival. 





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Camel Festival, Bikaner
Camel the ship of the Desert holds a very important place in the heart and lives of Rajasthani people. To recognize the importance of this useful animal, Camel Festival is celebrated with great joy in Bikaner every year in the month of January. This grand celebration brings Bikaner city to life as the event opens with beautiful & colourful procession of ornamented and accessorized camels that walks gracefully. The magnificent and massive Junagarh Fort serves as the perfect backdrop to the festival. Many activities takes place after the opening procession such as tug-of-war, camel dance competitions, puppet show, the best breed of camel contest and many more enjoyable actions are seen. The best part of the festival is the wonderful and amazing Camel Dance show in which the brilliantly trained camels dance in synchronisation to the drumbeats and music played for them and leaves everyone almost speechless.

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Gangaur Festival, Jaipur
Gangaur is one of the most significant festivals for women of Rajasthan and is celebrated for eighteen long days. The festival is held in honour of goddess Gauri, who is believed to be the goddess of marital happiness. This festival is celebrated all over Rajasthan by both married and unmarried ladies. The goddess Gauri images are beautifully ornamented and decorated and offerings are made to please her and in turn get blessed with good husbands and health, wealth and long life for their husbands. There is a huge procession taken out of goddess by the ladies of Rajasthan dressed brightly in beautiful attires and sing songs of departure of Gauri to her husband's house. 



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Teej Festival, Jaipur
Teej is a unique festival celebrated all over Rajasthan and some parts of North India, but the real fun and joy of this festival can be seen in Jaipur. Teej is dedicated to goddess Parvati and takes place on the onset of monsoon somewhere in the month of July - August. Jaipur celebrates the festival with lots of enthusiasm, women and young girls dress up with colourful clothes and accessorises with bangles and jewellery with mostly green colour as it symbolises freshness. Decorated swings are hung from trees in various gardens and lawns all over on which women and girls enjoy themselves and sing songs to welcome monsoon. 




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Mewar Festival, Udaipur
Mewar Festival welcomes the onset of the spring season and coincides with Gangaur Festival. Celebrated in Udaipur annually in the month of March – April, it is a three day event which holds an important place for women. There is a huge procession taken out in which women are the main participants, they carry the idols of Gangaur and Isar through different parts of the city singing and dancing. At Lake Pichola procession concludes and the idols are shifted into boats at the ghat. Devotional songs, dance performances and a number of other programs are organized that highlight the Rajasthani culture during Mewar festival. This three-day festival ends with a beautiful display of fireworks.



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Elephant Festival, Jaipur
A unique event held in the capital city of Rajasthan – Jaipur is the Elephant Festival. It is celebrated on the day of Holi, the Indian festival of colours which is celebrated all over the country. The festival opens with Elephant's catwalk pageant, these giants are marvellously decorated and painted from trunk to tail with glittering colours and accessorized with ornaments and embroidered velvets. The impressive procession also includes chariots, camels, horses, cannons and palanquins etc that enthral the audience. Polo game and races also entertain people there and lastly everybody celebrates the vivid festival Holi with full fun and joy.



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Urs Festival, Ajmer
Urs Festival is one of the most important and significant festivals of the Muslim community of India as it marks the death anniversary of the Sufi saint, Khwaja Moin-ud-din-Chisti. This festival is celebrated at the lakeside city of Ajmer in Rajasthan where the holy Dargah Sharif is situated which houses the mortal remains of the saint. The festival takes place on the first six days of the seventh month of the Islamic calendar, known as Rajab. Devotees from all over the country gather at the Ajmer Dargah Sharif to pay their respects to the Khwaja. They also give rich offerings that include sandalwood paste, roses, perfumes, jasmine flowers, incense, etc.

Wednesday, May 25, 2016

राजस्थान की नदियां एंव झीले

१) चम्बल नदी -
इस नदी का प्राचीन नाम चर्मावती है। कुछ स्थानों पर इसे कामधेनु भी कहा जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश के मऊ के दक्षिण में मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी (६१६ मीटर ऊँची) के विन्ध्यन कगारों के उत्तरी पार्श्व से निकलती है। अपने उदगम् स्थल से ३२५ किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर एक लंबे संकीर्ण मार्ग से तीव्रगति से प्रवाहित होती हुई चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है। यहां से कोटा तक लगभग ११३ किलोमीटर की दूरी एक गार्ज से बहकर तय करती है। चंबल नदी पर भैंस रोड़गढ़ के पास प्रख्यात चूलिया प्रपात है। यह नदी राजस्थान के कोटा, बून्दी, सवाई माधोपुर व धौलपुर जिलों में बहती हुई उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले मुरादगंज स्थान में यमुना में मिल जाती है। यह राजस्थान की एक मात्र ऐसी नदी है जो सालोंभर बहती है। इस नदी पर गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध बने हैं। ये बाँध सिंचाई तथा विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियों में काली, सिन्ध, पार्वती, बनास, कुराई तथा बामनी है। इस नदी की कुल लंबाई ९६५ किलोमीटर है। यह राजस्थान में कुल ३७६ किलोमीटर तक बहती है।
२) काली सिंध -
यह चंबल की सहायक नदी है। इस नदी का उदगम् स्थल मध्य प्रदेश में देवास के निकट बागली गाँव है। कुध दूर मध्य प्रदेश में बहने के बाद यह राजस्थान के झालावाड़ और कोटा जिलों में बहती है। अंत में यह नोनेरा (बरण) गांव के पास चंबल नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई २७८ किलोमीटर है।
३) बनास नदी -
बनास एक मात्र ऐसी नदी है जो संपूर्ण चक्र राजस्थान में ही पूरा करती है। बनअआस अर्थात बनास अर्थात (वन की आशा) के रुप में जानी जाने वाली यह नदी उदयपुर जिले के अरावली पर्वत श्रेणियों में कुंभलगढ़ के पास खमनौर की पहाड़ियों से निकलती है। यह नाथद्वारा, कंकरोली, राजसमंद और भीलवाड़ा जिले में बहती हुई टौंक, सवाई माधोपुर के पश्चात रामेश्वरम के नजदीक (सवाई माधोपुर) चंबल में गिर जाती है। इसकी लंबाई लगभग ४८० किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में बेडच, कोठरी, मांसी, खारी, मुरेल व धुन्ध है। ()बेडच नदी १९० किलोमीटर लंबी है तथा गोगंडा पहाड़ियों (उदयपुर) से निकलती है। (ii )कोठारी नदी उत्तरी राजसामंद जिले के दिवेर पहाड़ियों से निकलती है। यह १४५ किलोमीटर लंबी है तथा यह उदयपुर, भीलवाड़ा में बहती हुई बनास में मिल जाती है।
(
iii) खारी नदी ८० किलोमीटर लंबी है तथा राजसामंद के बिजराल की पहाड़ियों से निकलकर देवली (टौंक) के नजदीक बनास में मिल जाती है।
४) बाणगंगा -
इस नदी का उदगम् स्थल जयपुर की वैराठ की पहाड़ियों से है। इसकी कुल लंबाई ३८० किलोमीटर है तथा यह सवाई माधोपुर, भरतपुर में बहती हुई अंत में फतेहा बाद (आगरा) के समीप यमुना में मिल जाती है। इस नदी पर रामगढ़ के पास एक बांध बनाकर जयपुर को पेय जल की आपूर्ति की जाती है।
५) पार्वती नदी -
यह चंबल की एक सहायक नदी है। इसका उदगम् स्थल मध्य प्रदेश के विंध्यन श्रेणी के पर्वतों से है तथा यह उत्तरी ढाल से बहती है। यह नदी करया हट (कोटा) स्थान के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है और बून्दी जिले में बहती हुई चंबल में गिर जाती है।
६) गंभीरी नदी -
११० किलोमीटर लंबी यह नदी सवाई माधोपुर की पहाड़ियों से निकलकर करौली से बहती हुई भरतपुर से आगरा जिले में यमुना में गिर जाती है।
७) लूनी नदी -
यह नदी अजमेर के नाग पहाड़-पहाड़ियों से निकलकर नागौर की ओर बहती है। यह जोधपुर, बाड़मेर और जालौर में बहती हुई यह गुजरात में प्रवेश करती है। अंत में कच्छ की खाड़ी में गिर जाती है। लूनी नदी की कुल लंबाई ३२० किलोमीटर है। यह पूर्णत: मौसमी नदी है। बलोतरा तक इसका जल मीठा रहता है लेकिन आगे जाकर यह खारा होता जाता है। इस नदी में अरावली श्रृंखला के पश्चिमी ढाल से कई छोटी-छोटी जल धाराएँ, जैसे लालरी, गुहिया, बांड़ी, सुकरी जबाई, जोजरी और सागाई निकलकर लूनी नदी में मिल जाती है। इस नदी पर बिलाड़ा के निकट का बाँध सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है।
८) मादी नदी -
यह दक्षिण राजस्थान मुख्यत: बांसबाड़ा और डूंगरपुर जिले की मुख्य नदी है। यह मध्य प्रदेश के धार जिले में विंध्यांचल पर्वत के अममाऊ स्थान से निकलती है। उदगम् से उत्तर की ओर बहने के पश्चात् खाछू गांव (बांसबाड़ा) के निकट दक्षिणी राजस्थान में प्रवेश करती है। बांसबाड़ा और डूंगरपूर में बहती हुई यह नदी गुजरात में प्रवेश करती है। कुल ५७६ किलोमीटर बहने के पश्चात् यह खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरन है। इस नदी पर बांसबाड़ा जिले में माही बजाज सागर बांध बनाया गया है।
९) धग्धर नदी -
यह गंगानगर जिले की प्रमुख नदी है। यह नदी हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणियों से शिमला के समीप कालका के पास से निकलती है। यह अंबाला, पटियाला और हिसार जिलों में बहती हुई राजस्थान के गंगानगर जिले में टिब्वी के समीप उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवेश करती है। पूर्व में यह बीकानेर राज्य में बहती थी लेकिन अब यह हनुमानगढ़ के पश्चिम में लगभग ३ किलोमीटर दूर तक बहती है। 
हनुमानगढ़ के पास भटनेर के मरुस्थलीय भाग में बहती हुई विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लंबाई ४६५ किलोमीटर है। इस नदी को प्राचीन सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है।
१०) काकनी नदी -
इस नदी को काकनेय तथा मसूरदी नाम से भी बुलाते है। यह नदी जैसलमेर से लगभग २७ किलोमीटर दूर दक्षिण में कोटरी गाँव से निकलती है। यह कुछ किलोमीटर प्रवाहित होने के उपरांत लुप्त हो जाती है। वर्षा अधिक होने पर यह काफी दूर तक बहती है। इसका पानी अंत में भुज झील में गिर जाता है।
११) सोम नदी -
उदयपुर जिले के बीछा मेड़ा स्थान से यह नदी निकलती है। प्रारंभ में यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई डूंगरपूर की सीमा के साथ-साथ पूर्व में बहती हुई बेपेश्वर के निकट माही नदी से मिल जाती है।
१२) जोखम -
यह नदी सादड़ी के निकट से निकलती है। प्रतापगढ़ जिले में बहती हुई उदयपुर के धारियाबाद तहसील में प्रवेश करती है और सोम नदी से मिल जाती है।
१३) साबरमती -
यह गुजरात की मुख्य नदी है परंतु यह २९ किलोमीटर राजस्थान के उदयपुर जिले में बहती है। यह नदी पड़रारा, कुंभलगढ़ के निकट से निकलकर दक्षिण की ओर बहती है। इस नदी की कुल लंबाई ३१७ किलोमीटर है।
१४) काटली नदी -
सीकर जिले के खंडेला पहाड़ियों से यह नदी निकलती है। यह मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर यह प्रवाहित होती है। यह उत्तर में सींकर व झुंझुनू में लगभग १०० किलोमीटर बहने के उपरांत चुरु जिले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।
१५) साबी नदी -
यह नदी जयपुर जिले के सेवर पहाड़ियों से निकलकर मानसू, बहरोड़, किशनगढ़, मंडावर व तिजारा तहसीलों में बहने के बाद गुडगाँव (हरियाणा) जिले के कुछ दूर प्रवाहित होने के बाद पटौदी के उत्तर में भूमिगत हो जाती है।
१६) मन्था नदी -
यह जयपुर जिले में मनोहरपुर के निकट से निकलकर अंत में सांभर झील में जा मिलती है।
जिलानुसार राजस्थान की नदियां

१) अजमेर - साबरमती, सरस्वती, खारी, ड़ाई, बनास
२) अलवर - साबी, रुपाढेल, काली, गौरी, सोटा
३) बाँसबाड़ा - माही, अन्नास, चैणी
४) बाड़मेर - लूनी, सूंकड़ी
५) भरतपुर - चम्बल, बराह, बाणगंगा, गंभीरी, पार्वती
६) भीलवाडा - बनास, कोठारी, बेडच, मेनाली, मानसी, खारी
७) बीकानेर - कोई नदी नही
८) बूंदी - कुराल
९) चुरु - कोई नदी नही
१०) धौलपुर - चंबल
११) डूंगरपुर - सोम, माही, सोनी
१२) श्रीगंगानगर - धग्धर
१३) जयपुर - बाणगंगा, बांड़ी, ढूंढ, मोरेल, साबी, सोटा, डाई, सखा, मासी
१४) जैसलमेर - काकनेय, चांघण, लाठी, धऊआ, धोगड़ी
१५) जालौर - लूनी, बांड़ी, जवाई, सूकड़ी
१६) झालावाड़ - काली सिन्ध, पर्वती, छौटी काली सिंध, निवाज
१७) झुंझुनू - काटली
१८) जोधपुर - लूनी, माठड़ी, जोजरी
१९) कोटा - चम्बल, काली सिंध, पार्वती, आऊ निवाज, परवन
२०) नागौर - लूनी
२१) पाली - लीलड़ी, बांडी, सूकड़ी जवाई
२२) सवाई माधोपुर - चंबल, बनास, मोरेल
२३) सीकर - काटली, मन्था, पावटा, कावंट
२४) सिरोही - प. बनास, सूकड़ी, पोसालिया, खाती, किशनावती, झूला, सुरवटा
२५) टोंक - बनास, मासी, बांडी
२६) उदयपुर - बनास, बेडच, बाकल, सोम, जाखम, साबरमती
२७) चित्तौडगढ़ - वनास, बेडच, बामणी, बागली, बागन, औराई, गंभीरी, सीवान, जाखम, माही।


राजस्थान में मीठे पानी और खारे पानी की दो प्रकार की झीलें हैं। खारे पानी की झीलों से नमक तैयार किया जाता है। मीठे पानी की झीलों का पानी पीने एंव सिंचाई के काम में आता है।मीठे पानी की झीले -
राजस्थान में मीठे पानी की झीलों में जयसमन्द, राजसमन्द, पिछोला, आनासागर, फाईसागर, पुष्कर, सिलसेढ, नक्की, बालसमन्द, कोलायत, फतहसागर व उदयसागर आदि प्रमुख है।

१) जयसमन्द - यह मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। यह उदयपुर जिले में स्थित है तथा इसका निर्माण राजा जयसिंह ने १६८५-१६९१ ई० में गोमती नदी पर बाँध बनाकर करवाया था। यह बाँध ३७५ मीटर लंबा और ३५ मीटर ऊँचा है। यह झील लगभग १५ किलोमीटर लंबी और ८ किलोमीटर चौड़ी है। यह उदयपुर से ५१ किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसमें करीब ८ टापू हैं जिसमें भील एंव मीणा जाति के लोग रहते हैं।
इस झील से श्यामपुर तथा भाट नहरे बनाई गई हैं। इन नहरों की लंबाई क्रमश: ३२४ किलोमीटर और १२५ किलोमीटर है।
इस झील में स्थित बड़े टापू का नाम 'बाबा का भागड़ा' और छोटे टापू का नाम 'प्यारी' है। इस झील में ६ कलात्मक छतरियाँ एंव प्रसाद बने हुए हैं जो बहुत ही सुन्दर हैं। झील पहाड़ियों से घिरी है। शांत एंव मनोरम वातावरण में इस झील का प्राकृतिक सौंदर्य मनोहरी है जो पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।

२) राजसमन्द - यह उदयपुर से ६४ किलोमीटर दूर कांकरौली स्टेशन के पास स्थित है। यह ६.५ किलोमीटर लंबी और ३ किलोमीटर चौड़ी है। इस झील का निर्माण १६६२ ई० में उदयपुर के महाराणा राजसिंह के द्वारा कराया गया। इसका पानी पीने एंव सिचाई के काम आता है। इस झील का उत्तरी भाग नौ चौकी के नाम से विख्यात है जहां संगमरमर की २५ शिला लेखों पर मेंवाड़ का इतिहास संस्कृत भाषा में अंकित है।

३) पिछोला झील - यह उदयपुर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दरतम् झील है। इसके बीच में स्थित दो टापूओं पर जगमंदिर और जगनिवास दो सुन्दर महल बने हैं। इन महलों का प्रतिबिंब झील में पड़ता है। इस झील का निर्माण राणा लाखा के शासन काल में एक बंजारे ने १४वीं शताब्दी के अंत में करवाया था। बाद में
इसे उदय सिंह ने इसे ठीक करवाया। यह झील लगभग ७ किलोमीटर चौड़ी है।

४) आनासागर झील - ११३७ ई० में इस झील का निर्माण अजमेर के जमींदार आना जी के द्वारा कराया गया। यह अजमेर में स्थित है। यह दो पहाड़ियों के बीच में बनाई गई है तथा इसकी परिधि १२ किलोमीटर है। जहाँगीर ने यहाँ एक दौलत बाग बनवाया तथा शाहजहाँ के शासन काल में यहां एक बारादरी का निर्माण हुआ। पूर्णमासी की रात को चांदनी में यह झील एक सुंदर दृश्य उपस्थित करती है।

५) नक्की झील - यह एक प्राकृतिक झील है तथा यह माउंट आबू में स्थित है। यह झील लगभग ३५ मीटर गहरी है। यह झील का कुल क्षेत्रफल ९ वर्ग किलोमीटर है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों का मुख्य केन्द्र है।

६) फाई सागर - यह भी एक प्राकृतिक झील है और अजमेर में स्थित है। इसका पानी आना सागर में भेज दिया जाता है क्योंकि इसमें वर्ष भर पानी रहता है।

७) पुष्कर झील - यह अजमेर से ११ किलोमीटर दूर पुष्कर में स्थित हैं। इस झील के तीनों ओर पहाड़ियाँ है तथा इसमें सालों भर पानी भरा रहता है। वर्षा ॠतु में यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत मनोहारी एंव आकर्षक लगता है। झील के चारों ओर स्नान घाट बने है। यहां ब्रह्माजी का मंदिर है। यह हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहां हर साल मेला लगता है।

८) सिलीसेढ़ झील - यह एक प्राकृतिक झील है तथा यह झील दिल्ली-जयपुर मार्ग पर अलवर से १२ किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। यह झील सुंदर है तथा पर्यटन का मुख्य स्थल है।

९) बालसमन्द झील - यह झील जोधपुर के उत्तर में स्थित है तथा इसका पानी पीने के काम में आता है।

१०) कोलायत झील - यह झील कोलायत में स्थित है जो बीकानेर से ४८ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यहां कपिल मुनि का आश्रम है तथा हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मेला लगता है।

११) फतह सागर - यह पिछोला झील से १.५ किलोमीटर दूर है। इसका निर्माण राणा फतह सिंह ने कराया था। यह पिछोला झील से निकली हुई एक नहर द्वारा मिली है।

१२) उदय सागर - यह उदयपुर से १३ किलोमीटर दूर स्थित है। इस झील का निर्माण उदयसिंह ने कराया था।

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खारे पानी की झील
१) साँभर झील - यह राजस्थान की सबसे बड़ी झील है। इसका अपवाह क्षेत्र ५०० वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह झील दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर लगभग ३२ किलोमीटर लंबी तथा ३ से १२ किलोमीटर तक चौड़ी है। ग्रीष्मकाल में वाष्पीकरण की तीव्र दर से होने के कारण इसका आकार बहुत कम रह जाता है। इस झील में प्रतिवर्ग किलोमीटर ६०,००० टन नमक होने का अनुमान है। इसका क्षेत्रफल १४५ वर्ग किलोमीटर है। इसके पानी से नमक बनाया जाता है। यहां सोड़ियम सल्फेट संयंत्र स्थापित किया गया है जिससे ५० टन सोड़ियम सल्फेट प्रतिदिन बनाया जाता है। यह झील जयपुर और नागौर जिले की सीमा पर स्थित है तथा यह जयपुर की फुलेरा तहसील में पड़ता है।

२) डीड़वाना झील - यह खारी झील नागौर जिले के डीड़वाना नगर के समीप स्थित है। यह ४ किलोमीटर लंबी है तथा इससे भी नमक तैयार किया जाता है। डीड़वाना नगर से ८ किलोमीटर दूर पर सोड़ियम सल्फेट का यंत्र लगाया गया है। इस झील में उत्पादित नमक का प्रयोग बीकानेर तथा जोधपुर जिलों में किया जाता है।

३) पंचभद्रा झील - बाड़मेर जिले में पंचभद्रा नगर के निकट यह झील स्थित है। यह लगभग २५ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर स्थित है। यह झील वर्षा के जलपर निर्भर नही है बल्कि नियतवाही जल श्रोतों से इसे पर्याप्त खारा जल मिलता रहता है। इसी जल से नमक तैयार किया जाता है जिसमें ९८ प्रतिशत तक सोड़ियम क्लोराइड़ की मात्रा है।

४) लूणकरण सागर - यह बीकानेर जिले के उत्तर-पूर्व में लगभग ८० किलोमीटर दूर स्थित है। इसके पानी में लवणीयता की कमी है अत: बहुत थोड़ी मात्रा में नमक बनाया जाता है। यह झील ६ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है।
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जिलानुसार राजस्थान की झीलें

जिला झीलें/बांध
अजमेर - आना सागर, फाई सागर, पुष्कर, नारायण सागर बांध
अलवर - राजसमन्द, सिलीसेढ़
बाँसवाड़ा - बजाज सागर बांध, कहाणा बांध
भरतपुर - शाही बांध, बारेण बांध, बन्ध बरेठा बांध
भीलबाड़ा - सरेपी बांध, उन्मेद सागर, मांड़लीस, बखड़ बांध, खाड़ी बांध, जैतपुर बांध
बीकानेर - गजनेर, अनुप सागर, सूर सागर, कोलायतजी
बूंदी - नवलखाँ झील
चित्तौड़गढ़ - भूपाल सागर, राणा प्रताप सागर
चुरु - छापरताल
धौलपुर - तालाबशाही
डूंगरपुर - गौरव सागर
जयपुर - गलता, रामगढ़ बांध, छापरवाड़ा
जैसलमेर - धारसी सागर, गढ़ीसर, अमर सागर, बुझ झील
जोधपुर - बीसलपुर बांध, बालसमन्द, प्रताप सागर, उम्मेद सागर, कायलाना, तख्त सागर, पिचियाक बांध
कोटा - जवाहर सागर बांध, कोटा बांध
पाली - हेमा बास बांध, जवाई बांध, बांकली, सरदार समन्द
सिरोही - नक्की झील (आबू पर्वत)
उदयपुर - जयसमन्द, राजसमन्द, उदयसागर, फतेह सागर, स्वरुप सागर और पिछोला।

राजस्थान : भौगोलिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य

भौगोलिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य

राजस्थान की चोहरी इसे एक पतंगाकार आकृति प्रदान करता है। राज्य २३ ० से ३० ० अक्षांश और ६९ ० से ७८ ० देशान्तर के बीच स्थित है। इसके उत्तर में पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा, दक्षिण में मध्यप्रदेश और गुजरात, पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश एवं पश्चिम में पाकिस्तान है।
सिरोही से अलवर की ओर जाती हुई ४८० कि.मी. लम्बी अरावली पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक दृष्टि से राज्य को दो भागों में विभाजित करती है। राजस्थान का पूर्वी सम्भाग शुरु से ही उपजाऊ रहा है। इस भाग में वर्षा का औसत ५० से.मी. से ९० से.मी. तक है। राजस्थान के निर्माण के पश्चात् चम्बल और माही नदी पर बड़े-बड़े बांध और विद्युत गृह बने हैं, जिनसे राजस्थान को सिंचाई और बिजली की सुविधाएं उपलब्ध हुई है। अन्य नदियों पर भी मध्यम श्रेणी के बांध बने हैं। जिनसे हजारों हैक्टर सिंचाई होती है। इस भाग में ताम्बा, जस्ता, अभ्रक, पन्ना, घीया पत्थर और अन्य खनिज पदार्थों के विशाल भण्डार पाये जाते हैं।
राज्य का पश्चिमी संभाग देश के सबसे बड़े रेगिस्तान "थारपाकर' का भाग है। इस भाग में वर्षा का औसत १२ से.मी. से ३० से.मी. तक है। इस भाग में लूनी, बांड़ी आदि नदियां हैं, जो वर्षा के कुछ दिनों को छोड़कर प्राय: सूखी रहती हैं। देश की स्वतंत्रता से पूर्व बीकानेर राज्य गंगानहर द्वारा पंजाब की नदियों से पानी प्राप्त करता था। स्वतंत्रता के बाद राजस्थान इण्डस बेसिन से रावी और व्यास नदियों से ५२.६ प्रतिशत पानी का भागीदार बन गया। उक्त नदियों का पानी राजस्थान में लाने के लिए सन् १९५८ में राजस्थान नहर (अब इंदिरा गांधी नहर) की विशाल परियोजना शुरु की गई। यह परियोजना सन् २००५ तक सम्पूर्ण होगी। इस परियोजना पर ३००० करोड़ रु. व्यय होने का अनुमान है। इस समय इस पर १६०० करोड़ रु. व्यय हो चुके हैं। अब तक ६४९ कि.मी. लम्बी मुख्य नहर पूरी हो चुकी है। नहर की वितरिका प्रणाली लगभग ९००० कि.मी. होगी, इनमें से ६००० कि.मी. वितरिकाएं बन चुकी है। इस समय १० लाख हैक्टेयर भूमि परियोजना के सिंचाई क्षेत्र में आ गई है। परियोजना के पूरी होने के बाद क्षेत्र की कुल १५.७९ लाख हैक्टेयर भूमि सिंचाई से लाभान्वित होगी, जिससे ३५ लाख टन खाद्यान्न, ३ लाख टन वाणिज्यिक फसलें एवं ६० लाख टन घास उत्पन्न होगी। परियोजना क्षेत्र में कुल ५ लाख परिवार बसेंगे। जोधपुर, बीकानेर, चुरु एवं बाड़मेर जिलों के नगर और कई गांवों को नहर से विभिन्न "लिफ्ट परियोजनाओं' से पहुंचाये गये पीने का पानी उपलब्ध होगा। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान का एक बड़ा भाग शस्य श्यामला भूमि में बदल जायेगा। सूरतगढ़ में यह नजारा इस समय भी देखा जा सकता है।
इण्डस बेसिन की नदियों पर बनाई जाने वाली जल-विद्युत योजनाओं में भी राजस्थान भागीदार है। इसे इस समय भाखरा-नांगल और अन्य योजनाओं के कृषि एवं औद्योगिक विकास में भरपूर सहायता मिलती है। राजस्थान नहर परियोजना के अलावा इस भाग में जवाई नदी पर निर्मित एक बांध है, जिससे न केवल विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई होती है, वरन् जोधपुर नगर को पेय जल भी प्राप्त होता है। यह सम्भाग अभी तक औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पर इस क्षेत्र में ज्यो-ज्यों बिजली और पानी की सुविधाएं बढ़ती जायेंगी औद्योगिक विकास भी गति पकड़ लेगा। इस बाग में लिग्नाइट, फुलर्सअर्थ, टंगस्टन, बैण्टोनाइट, जिप्सम, संगमरमर आदि खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जैसलमेर क्षेत्र में तेल मिलने की अच्छी सम्भावनाएं हैं। हाल ही की खुदाई से पता चला है कि इस क्षेत्र में उच्च कि की गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अब वह दिन दूर नहीं है जबकि राजस्थान का यह भाग भी समृद्धिशाली बन जाएगा।
राज्य का क्षेत्रफल ३.४२ लाख वर्ग कि.मी. है जो भारत के क्षेत्रफल का १०.४० प्रतिशत है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। वर्ष १९९६-९७ में राज्य में गांवों की संख्या ३७८८९ और नगरों तथा कस्बों की संख्या २२२ थी। राज्य में ३२ जिला परिषदें, २३५ पंचायत समितियां और ९१२५ ग्राम पंचायतें हैं। नगर निगम २ और सभी श्रेणी की नगरपालिकाएं १८० हैं।
सन् १९९१ की जनगणना के अनुसार राज्य की जनसंख्या ४.३९ करोड़ थी। जनसंखाय घनत्व प्रति वर्ग कि.मी. १२६ है। इसमें पुरुषों की संख्या २.३० करोड़ और महिलाओं की संख्या २.०९ करोड़ थी। राज्य में दशक वृद्धि दर २८.४४ प्रतिशत थी, जबकि भारत में यह दर २३.५६ प्रतिशत थी। राज्य में साक्षरता ३८.८१ प्रतिशत थी. जबकि भारत की साक्षरता तो केवल २०.८ प्रतिशत थी जो देश के अन्य राज्यों में सबसे कम थी। राज्य में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति राज्य की कुल जनसंख्या का क्रमश: १७.२९ प्रतिशत और १२.४४ प्रतिशत है।
१९९६-९७ के अन्त में प्राथमिक विद्यालय ३३८९, उच्च प्राथमिक विद्यालय १२,६९२, माध्यमिक विद्यालय ३५०१ और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय १४०४ थे। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय ६, "डीम्ड' विश्वविद्यालय ४, कला वाणिज्य और विज्ञान महाविद्यालय २३१, इंजीनियकिंरग कॉलेज ७, मेडिकल कॉलेज ६, आयुर्वेद महाविद्यालय ५ और पोलीटेक्निक २४ हैं। राज्य में हॉस्पिटल २९, डिस्पेंसरियां २७८, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र १६१६, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र २६१, शहरी सहायता केन्द्र १३, उपकेन्द्र ९४००, मातृ एवं शिशु कल्याण केन्द्र ११८ एवं अन्तरोगी शैय्या में ३६७०२ हैं। आयुर्वेद औषधालयो की संख्या ३५७१ और होम्योपैथी चिकित्सालयों की संख्या १४६८ और भ्रमणशील पशु चिकित्सालयों की संख्या ५३ है।
राज्य में पशुधन की संख्या ६ करोड़ से अधिक है। राज्य के सभी नगर एवं ३७,२७४ गांव सुरक्षित पेय जल योजना के अन्तर्गत आ चुके हैं। राज्य में सड़कों की कुल लम्बाई १,३८,००० कि.मी. थी और वाहनों की संख्या १९.८ लाख थी। इनमें कारों और जीपों की संख्या १,६० लाख थी।
१९९६-९७ में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद स्थिर कीमतों पर लगभग १२४२० करोड़ रु. और सुद्ध घरेलू उत्पाद ११,०२१ करोड़ रु का था। राज्य में प्रति व्यक्ति आय २,२३२ रु. थी। उक्त वर्ष राज्य में खाद्यान्न उत्पाद १२७०२ लाख टन था और तिलहन तथा कपास का उत्पादन क्रमश: ४० लाख टन और १२.९५ लाख गांठें थी। राज्य में फसलों के अन्तर्गत कुल १७५ लाख हैक्टेयर क्षेत्र था। इसका २९ प्रतिशत सिंचित क्षेत्र था।
राज्य में १९९६ में शक्कर का उत्पादन ३१ हजार टन, वनस्पति घी का ३० हजार टन, नमक का ११ लाख टन, सीमेन्ट का ६६ लाख टन, सूती कपडे का ४५७ लाख मीटर और पोलिएस्टर धागे का उत्पादन ११५०० टन हुआ। प्रदेश में १९९६ में सार्वजनिक क्षेत्र में १०.१० लाख और निजी क्षेत्र में २.५६ लाख व्यक्ति कार्यरत थे। राज्य में बैंकों की कुल शाखाएं ३२१७ थीं, जिनमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की १०७० शाखाएं शामिल हैं।